हेपेटाइटिस -बी ” एड्स ” से अधिक भयानक रोग है क्या आप जानते है ?

रोगी के मल मूत्र द्वारा संक्रमित जल , भोज्य पदार्थो , रोग से संक्रमित व्यक्ति का रक्त चढाने , रोगी व्यक्ति की संक्रमित सुई स्वस्थ मनुष्यो में लगाने से फैलता है .इससे मनुष्य इस बीमारी से ग्रसित हो जाते है! क्षुधानाश , उत्कलेश, नेत्र , मूत्र और त्वचा का रंग पीला हो जाना , कमजोरी और पाचन संबंधी विकार उत्तपन हो जाते है ! रोगी के रक्त में Screen Billimiben की मात्रा बढ़ जाती है ! मूत्र में Hrobillrumb की मात्रा बढ़ जाती है ! Albumen trace हो सकती है और BileSalts भी मिलते है ! लिवर Cells के ख़राब होने के कारण SGOT और SGPT बढ़ते है !  रक्त में स्वेत कणो की संख्या या तो सामान्य हो जाती है अथवा सामान्य से भी बहुत काम हो जाती है ! एक से तीन सप्ताह की अवधि में 80 % रोगी स्वस्थ हो जाते है ! बाकी 20 % रोगी मृत्यु को प्राप्त हो जाते है या लम्बे समय तक रोग ग्रस्त रहते है ! आधुनिक चिकित्सा का प्रयोग इस बीमारी के लिए निरर्थक होता जा रहा है क्यों की विषाणुओ पर न तो Antibiotics का और न ही Steroids का प्रभाव होता है ! अतः कोई ओषधि भी इन पर प्रभाव नहीं कर पाती है !

इस लिए रोगी को फलो के रस ,ग्लूकोज को पानी में मिलाकर देते है ! साथ में दिन में दो बार बी-कॉम्प्लेस भी देते है !  इस तरीके से रोगी एक से तीन सप्ताह में ठीक हो जाता है ! यह रोज उतना भयानक नहीं है जितना इसका प्रचार किया गया है ! वास्तव में आधुनिक ओषधि शास्त्र सिर्फ पैसे कमाने के रस्ते है पहले रोगी को भय दिखा कर भयभीत करना फिर ओषधि के प्रभाव को दिखा कर स्व्स्थ भी कर देते है !  जहा तक आयुर्वेद का सम्बन्ध है इस रोग पर बहुत अनुसन्धान हुआ है !  कमला (पीलिया ) की उत्पति के विषय में महर्षि चरक कहते है : पाण्डु या किसी अन्य रोग द्वारा क्रश व्यक्ति जब पित्तवर्धक पदार्थो का अत्यधिक सेवन करता है तो उससे बढ़ा हुआ पिट रोगी के रक्त और मांस धातु को दग्ध करके कामला को उत्पन्न कर देता है !

उस की आँखे , त्वचा , नख और चेहरा हल्दी  के सामान पीले हो जाते है ! उसका मल मूत्र भी पीले हो जाते है , रोगी का वर्ण बरसात के मेढ़क की तरह हो जाता है ! रोगी की इन्द्रिया शिथिल हो जाती है , उसे दाह ,अपचन सुस्ती और भोजन के प्रति अरुचि हो जाती है !

यह कमला पित दोष की अधिकता से होता है और इसके कोष्ठाश्रय और शाखाश्रय ये दो भेद होते है !

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